आप गलत जगह पर गलत चीज़ खोज रहे हो। जो रसना कृष्ण से मिलनी है, वो कृष्ण से ही मिलेगी; वो कामना में नहीं मिलेगी। जो रस कृष्ण देंगे, वो रस सिर्फ़ कृष्ण ही दे सकते हैं, कामनाएं नहीं देंगी। जो रस आत्मा से ही बहना है, वो रस आत्मा से ही बहेगा, अहंकार से नहीं बह पाएगा।
तलाश सब को एक ही की है। हम सब एक ही हैं, तो तलाश भी सब को एक ही की है, बस कुछ खोजने निकल पड़े हैं और जो खोजने निकल पड़ता है, वो अपने ही तल पर खोजता रह जाता है। उस तल पर मिलेगा नहीं। तलाश सबको उसी रस की है, जिसका नाम सत्य है। उपनिषद् कहते हैं रसोवई सख, वह रस रूप है। रस का अर्थ होता है सार, एसेंस, जूस कि जैसे बाहर-बाहर दिख रहा हो जो, उसके भीतर की मिठास, उसके भीतर का सत्व, वह ‘वह’ है। वह रस रूप है।
——————————-
आचार्य प्रशांत के सानिध्य में ३१वें अद्वैत बोध शिविर का आयोजन किया जाने वाला है।
आचार्य जी के सानिध्य में रहने का और दुनिया भर के दुर्लभ शास्त्रों के अध्ययन के इस सुनहरे अवसर को न जाने दें।
आवेदन हेतु ईमेल करें requests@prashantadvait.com पर
या
संपक करें
श्री अंशु शर्मा: +91 – 8376055661
——————————-
आचार्य प्रशांत द्वारा दिए गये बहुमूल्य व्याख्यान इन पुस्तकों में मौजूद हैं:
अमेज़न: http://tinyurl.com/Acharya-Prashant
फ्लिप्कार्ट: https://goo.gl/fS0zHf