प्रेम क्या है? प्रेम है: मन का शांत हो जाना, स्रोत के समीप आना। मन हमेशा शान्ति की ओर आकर्षित रहता है, इसी आकर्षण को प्रेम कहते हैं। मन हमेशा खिंचा चला जाता है, किसी की तरफ़, उसी को प्रेम कहते हैं। और किसकी तरफ़ खिंचता है? शान्ति की तरफ खिंचता है। मन शान्ति ही चाहता है , हमेशा। जैसे-जैसे मन शांत होता जाता है, वैसे-वैसे आपका कुछ पकड़ के रखने का जज्बा ख़त्म होता जाता है। जो कुछ भी आपने पकड़ के रखा होता है, वो आप छोड़ने लग जाते हैं। वो आपके माध्यम से बँटना शुरू हो जाता है – ये प्रेम है। और जैसे-जैसे आप छोड़ते जाते हैं, मन और शांत होता जाता है। आपके छोड़ने की क्षमता बढ़ती जाती है। आप दिए जा रहे हो, और देने में ही आपका उल्लास है। आपका मन ही नहीं करता, कंजूस की तरह पकड़ के रखने का।
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